हीरो

एक हीरो कौन होता है- स्पाइडर-मैन , बैट-मैन या सुपर-मैन जो अकेले दम पर पूरे शहर को बचा लेता है या जेम्स बांड जैसे महानायक जिनके सूझ-बूझ और बहादुरी के आगे दुनिया के शातिर खलनायकों कि एक नहीं चलती अथवा हमारे देशी दबंग जो कि खाली हाथों ही दुश्मनों की पूरी फौज को हरा देते हैं | हमारी फिल्में हमें ऐसा ही सोचने पर मजबूर करती हैं लेकिन ये वास्तविक जीवन से कोसों दूर हैं | वस्तुतः, असल जिंदगी में नायक वो होता है जो लीक से हट कर कुछ काम करे या उस कार्य को करने की क्षमता रखे जिसे करने में आम आदमी घबराता है, हिचकता है या फिर उसके दिमाग में ही ये बात नहीं आती कि ऐसा भी कुछ किया जा सकता है | हाँ, इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि कार्य का उद्देश्य समाज को हानि पहुँचाना न हो अपितु ये समाज के प्रगति में सहायक हो अथवा समाज को अच्छा बनाने में मदद करता हो ! अपने निजी जीवन में हमें बहुत बार हीरो बनने का मौका मिलता है लेकिन कुछ लोग इस मौके का फायदा नहीं उठाते – जो लोग उठा लेते हैं वो हीरो बन जाते हैं |

आपको वो कहानी याद है जिसमे एक राजा को अपने मंत्री का चुनाव करना था – उसके लिए उसने मार्ग के मध्य में एक पत्थर रख दिया और छुप कर ये देखने लगा कि कौन इस पत्थर को हटाएगा | जिसने उस पत्थर को हटा दिया वो उसकी नज़र में हीरो बन गया | ऐसे ही हम अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में हीरो बन सकते – उसके लिए बहुत प्रयत्न अथवा बुद्धि अथवा शक्ति की आवश्यकता नहीं है – बस एक विशेषता होनी चाहिए – दुसरे के कष्टों को महसूस करने की क्षमता |

हमारे ऑफिस में गौरव काम करता था | एक दिन जब वो ऑफिस से घर जा रहा था कि उसके घर के पास के एक नाले पर कुछ कुत्ते काफी शोर कर रहे थे | अमूमन, हम ऐसी घटनाओ को अनदेखा कर देते हैं पर उसने ऐसा नहीं किया – वो उस नाले की तरफ गया और वहां उसे पता चला कि एक कुत्ते का पिल्ला उस नाले में गिर गया है | उससे रहा नहीं गया, वो उस नाले में उतर गया और उस पिल्ले को निकाल लाया | यही नहीं उसने पिल्ले की अच्छी देखभाल की- अपने घर में उसे शरण दी, उसके सोने की व्यवस्था की और और दूध-ब्रेड का स्वादिष्ट भोजन भी परोसा | 2-3 दिन में वो पिल्ला पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गया और शाम को जब भी गौरव घर पहुंचता, तो दोस्त की माफिक उससे मिलने आता , उसके साथ खेलता और रात में उसके घर में ही सोता | देखा जाए, तो ये एक छोटी सी घटना है पर फिर भी उस पिल्ले के लिए गौरव किसी सुपरमैन या बैटमैन जैसे सुपर-हीरो से कम नहीं था |

एक और घटना याद आती है – कुछ वर्षों पहले हमारा ऑफिस बेसमेंट में था | बेसमेंट की सीढ़ियों की बनावट ऐसी घटिया थी कि कोई भी बहार निकलते वक़्त अवश्य ही सीढ़ियों से टकराता था और कई वाकये तो ऐसे हुए कि तेजी से आते हुए लोगों के सर में काफी जोर से चोट पहुंची | हमने उस बिल्डिंग के मालिक से मशविरा किया कि क्या किया जाए पर चूँकि तकलीफ उन्हें थी नहीं तो अधिक ध्यान भी उस पर नहीं दिया गया | हमारी टीम ने सोचा कि यदि वहां पर एक चेतावनी वाली तख्ती लटका दी जाए तो लोग शायद टकराने से बच जायेंगे और हमने निम्न प्रदर्शित तख्ती ऐन उस जगह लटका दी जहाँ पर लोगों के सर लड़ते थे |

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अब जैसे ही कोई व्यक्ति उस सीढ़ी के नज़दीक पहुँचता तो इस तख्ती को देखता, हँसता और अपना सर बचा के बाहर निकल लेता | इस तख्ती के वहां लगने के बाद से एक भी इंसान के सर में चोट नहीं लगी और ऐसे स्थान को जो कि लोगों को दर्द पहुँचाने के काम में आता था, हमारी टीम ने उसे लोगों को खुश करने का स्थान बना दिया | क्या ये किसी हीरोगिरी से कम था ??